History and Importance of Makka, Part – 2
बिस्मिल्लाह हिर्ररहमान निर्रहीम, शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा महेरबान और निहायत ही रेहम करने वाला हे।
अगर आपने History and Importance of Makka. की पहली क़िस्त नहीं पढ़ी हे तो यहाँ क्लिक कर के पहली क़िस्त पढ़िए ताकि इस क़िस्त को समझने में आसानी रहे। पिछली पोस्ट में आपने पढ़ा किस तरह अल्लाह रब्बुल आलमीन के हुक्म पर हज़रत इब्राहिम अलैहि अस्सलाम अपनी ज़ौजा बीबी हाज़रा अलैहि अस्सलाम और अपने लख्ते जिगर हज़रत इस्माइल अलैहि अस्सलाम को वीरान और बियाबान जंगल में कुछ दिन का खाना और पानी देकर चले गए अल्लाह के भरोसे छोड़ के। और उसके बाद हज़रात इस्माइल अलैहि अस्सलाम की एडीओ से पानी का एक चस्मा जारी किआ जो बाद मे ज़मज़म के कुए के नाम से मशहूर हुआ।
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उसके बाद जुरहुम क़ाबिले का आगमन हुआ और उनके बसनेसे वो वीरान जगह आबाद हुई। कुछ वक़्त बाद बीबी हाज़रा अलैहि अस्सलाम अल्लाह कि रेहमत में पहुंचे गए। अल्लाह के हुक्म से हज़रत इब्राहीम अलैहि अस्सलाम और हज़रत इस्माइल अलैहि अस्सलाम ने मिलकर काबे की तामीर की और हज़रत इब्राहिम अलैहि अस्सलाम ने मरते दम तक लोगो को सीधे राह पर चलने और एक खुदा की इबादत करने का हुक्म दिआ. अल्लाह रब्बुल आलमीन ने भी लोगो के दिलो में काबे की अज़मत और दाल दी और लोग भी काबे की इज़्ज़त करने लगे अब आगे……
History and Importance of Makkah
हज़रत इस्माईल की विरासत और मक्का की देखरेख।
हज़रत इस्माइल अलैहि अस्सलाम ने अपनी पूरी ज़िन्दगी इस्लाम की खिदमत और तब्लीग में बिताई, और एक आरसे के बाद वहभी अल्लाह की बारगाह में पहुंच गए। आपका निकाह मक्का में ही हुआ था और आपकी औलादे भी यही रहती थी। आपके खानदान वाले ही मक्का की देखभाल करते थे और ट्रस्टी भी थे, काबे की चाबियां भी उन्ही के पास रहती थी। वह लोग दिन पर मजबूती से चलते थे और एक खुदा की इबादत करते थे और उसी दिन पर चलते थे जो हज़रत इब्राहिम अस्सलाम लेकर आये थे।। वक़्त गुज़रता गया और आहिस्ता आहिस्ता दिन में नयी नयी बाते जुड़ने लगी।
अब वो दौर की शुरुआत हुई जब लोगो ने काबे के आसपास पड़े पत्थरो को भी इज़्ज़त ओर एहतराम देना शुरू कर दिए। लोग काबे के आसपास पड़े पत्थरो को अपने घर ले जाकर उसे हुरमतवाला मानकर उसकी इज़्ज़त करने लगे जितना काबे और हजरे अस्वद की करते थे। जो लोग मक्का से बहार रहते थे वो लोग तो एक कदम आगे बढे और काबे के आसपास से पत्थर ले जाकर अपने घरो में रखने लगे और अब मक्का आने की बजाय जहाँरहते थे वही से पत्थरो की ताज़ीम करने लगे और पत्थरो के इर्दगिर्द घूमने लगे और एक वक़्त वो आया जब लोगो ने उन्ही पथरो की पूजा शुरू कर दी। अल्लाहु अकबर।
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History and Importance of Makkah
मक्का में बुतपरस्ती का आगमन: अम्र बिन लोह का प्रभाव।
अब तो यह हाल हो गया की बड़े बड़े पत्थरो को काट कर उन्हें तराश कर आदमी और औरतो की शकल बनाते और उन्हें अलग अलग नाम दे कर पूजने लगते।बुतपरस्ती शुरुआत मक्का के इर्दगिर्द होना शुरू हो गयी (ना आउजोबिल्लाह ) लेकिन अब तक मक्का में बुतपरस्ती का दौर नहीं आया था, सिर्फ उनकी ताज़ीम करते थे पूजते नहीं थे। लेकिन वो वक़्त भी आ गया जब मक्का में भी बुतपरस्ती की शुरुआत हुई और जो इंसान ने मक्का में बुतपरस्ती की उस इंसान का नाम हे ”अमर बिन लोह”
हुबल का काबे में प्रवेश और अरब में बुतपरस्ती का फैलाव।
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”अमर बिन लोह” अपने ज़माने में मक्का का सरदार था। एक बार वो किसी काम से मक्का के बहार मुल्क़ ए शाम गया हुआ था, वह उसने लोगो को पत्थरो के आसपास घूमते और उन्हें पूजते हुए देखा, यह तरिका उसे बहोत पसंद आया और वो मुल्क़ ए शाम से एक बूत ले कर मक्का आया। मक्का आने के बाद वो उस बूतको लेकर जिसका नाम हुबल था उसे बैतुल्लाह यानी काबा में रखवाया। चूंकि वो सरदार था तो किसी ने एतराज नहीं किआ और वैसे भी लोग आहिस्ता आहिस्ता बुतपरस्ती के शिकार हो रहे थे तो कोन ऐतराज करता ?
History and Importance of Makkah
काबे की हुरमत: शिर्क के बावजूद काबे की इज़्ज़त बरक़रार।
”अम्र बिन लोह” वह पहला शक्श था जिसने हुबल नाम का बूत काबे में रखवाया। उसके बाद एक दिन अम्र जिद्दह गया वह से भी कुछ बुतो को लेकर आया और काबे में रखवा दिए। हर साल मक्का में लोग हज करने आते थे तब अम्र ने बुतपरस्ती को बढ़ावा दिआ और पुरे अरब मुल्क में बुतपरस्ती फ़ैल गयी तेजी से। अरबस्तान में सैंकड़ो कबीले थे और हर कबीले ने अपना अपना बूत बना लिआ और उसकी पूजा करने लगे। जो कबीला जितना बड़ा उस कबीले का बूत उतना ही बड़ा था। और क़ुरैश कबीला सबसे बड़ा था, इस वजह से क़ुरैश कबीले के बूत जिनक नाम हुबल और हुज्जा था वो सबसे ज्यादा मशहूर थे।
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दूसरा जो मशहूर कबीला था वो ताइफ़ का था जिसका नाम सकफ था और उनके क़बीले के बूत का नाम लात था, इसके अलावा कई बूत थे जिनके नाम असफ, लाइला वगेरे था। अफ़सोस की बात ह कभी खुदा की इबादत से लबरेज़ रहने वाला काबा बुतो से घिर कर शिर्क का अड्डा बन गया। ऐसे ही सदिया बित गयी लोग अब भूल भी गए थे की अल्लाह का घर इबादत के लिए हे ना की बुतपरस्ती के लिए और खुल्लम खुल्ला बुतपरस्ती में शामिल हो गए । पर एक बात थी खुलेआम शिर्क करने के बाद बभी लोगो के दिल में काबे की हुरमत कम नहीं हुई थी।
आजभी क़ुरैश और अरब के दूसरे क़बिले के लोगो के दिलो में काबे की वही इज़्ज़त थी जो उनके बाप दादा के दिलो में थी। चाहे वो बुतपरस्ती में मसगुल थे पर अपने घरों की ऊंचाई आजभी काब ऐसे ऊँची नहीं रखते थे और एहतराम करते थे। History and Importance of Makkah पोस्ट से आप आज का आर्टिकल पढ़ रहे हे ।
Conclusion:
आज की पोस्ट यही पर रोक रहा हु। इन्शाह अल्लाह आने वाली पोस्ट में हम ज़मज़म के कुए के मुताल्लिक अहम् जानकारी पोस्ट करेंगे। ज़मज़म के कुए को कैसे बंद किआ, किसने बंद किआ और क्यू बंद किआ ? और लोग कुए के बारे में भूल चुके थे फिर दुबारा कैसे ज़मज़म का कुआ को खोदा गया। और आप सलल्लाहु अलय्हिओ वस्सल्लम ककी दुनिया मे तशरीफ़ आवरी से कुछ वक़्त पहले अबाबील का जो वाक़्या हुआ जिसका ज़िक्र क़ुरआन ए करीम में हे उसके बारे में हम तफ्सील में जानेंगे। तब तक इस पोस्ट को पढ़िए और अपने दोस्तों में शेयर कीजिये ताकि वो भी इस मामूलात से महरूम न रहे। दुआ में याद रखियेगा अल्लाह हाफिज।
FAQ:
Q 1, मक्का के ट्रस्टी किस खानदान के लोग थे ?
A 1, मक्का के ट्रस्टी हजरत इस्माइल अलैहिअस्सलाम के ही खानदान के लोग थे।
Q 2, वक़्त गुज़रने के साथ लोग काबे के आस पास के पत्थरो के साथ क्या करने अलगे ?
A 2, वक़्त गुज़रने के साथ लोग काबे के आस पास के पत्थरो को अपने साथ रखने लगे।
Q 3, किस शख्स शख्स ने मक्का में बुत परस्ती की शुरुआत की?
A 3 , जिस शख्स ने मक्का में बुत परस्ती की शुरुआत की उसका नाम था अमर बिन लोही।
Q 4, पहला बुत जो काबा में रखा गया उसका नाम क्या था ?
A 4 , पहला बुत जो काबा में रखा गया जिसका नाम हुबल था।
Q 5, ताइफ़ के क़बीला ए सफक के मशहूर बुतो के क्या नाम थे ?
A 5, ताइफ़ के क़बीला ए सफक के मशहूर बुतो के नाम लात,आफ और नाइला थे।
Very informative article.
Masha Allah.